I got a detailed shlokas of Grurbramha that was put on Blog by Mr Vikram Patil
गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥भावार्थ: गुरु ब्रह्मा है, गुरु विष्णु है, गुरु हि शंकर है; गुरु हि साक्षात् परब्रह्म(परमगुरु) है; उन सद्गुरु को प्रणाम.धर्मज्ञो धर्मकर्ता च सदा धर्मपरायणः। तत्त्वेभ्यः सर्वशास्त्रार्थादेशको गुरुरुच्यते॥भावार्थ: धर्म से पूरी तरह परिचित, धर्म अनुकूल आचरण करनेवाले, धर्मपरायण, और अखिल शास्त्रों में से तत्त्वों का आदेश करनेवाले गुरु कहे जाते हैं.
निवर्तयत्यन्यजनं प्रमादतः स्वयं च निष्पापपथे प्रवर्तते। गुणाति तत्त्वं हितमिच्छुरंगिनाम् शिवार्थिनां यः स गुरु र्निगद्यते॥
भावार्थ: जो दूसरों को भ्रमित होने से रोकते हैं, स्वयं पापरहित जीवन रास्ते से चलते हैं, हित और कुशल-क्षेम, की अभिलाषा रखनेवाले को तत्त्वबोध करते हैं, उन्हें गुरु कहते हैं.
नीचं शय्यासनं चास्य सर्वदा गुरुसंनिधौ। गुरोस्तु चक्षुर्विषये न यथेष्टासनो भवेत्॥
भावार्थ: गुरु के पास निरन्तर उनसे छोटे आसन पर ही बैठना चाहिए. जब भी गुरु का आगमन होता है, तब उनकी अनुमति बिना नहीं बैठना चहिये.
भावार्थ: प्रोत्साहन देनेवाले, सूचन देनेवाले, यथार्थ बतानेवाले, पंथ दिखानेवाले, शिक्षा देनेवाले, और ज्ञान(बोध) करानेवाले – यह सभी (गुण ) गुरु समान है.गुकारस्त्वन्धकारस्तु रुकार स्तेज उच्यते। अन्धकार निरोधत्वात् गुरुरित्यभिधीयते॥
भावार्थ: ‘गु’कार याने अंधकार(तिमिर), और ‘रु’कार याने तेज; जो अंधकार का (ज्ञान का प्रकाश देकर) निरोध करता है, वह व्यक्ति को गुरु कहलाता है.
गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥भावार्थ: गुरु ब्रह्मा है, गुरु विष्णु है, गुरु हि शंकर है; गुरु हि साक्षात् परब्रह्म(परमगुरु) है; उन सद्गुरु को प्रणाम.धर्मज्ञो धर्मकर्ता च सदा धर्मपरायणः। तत्त्वेभ्यः सर्वशास्त्रार्थादेशको गुरुरुच्यते॥भावार्थ: धर्म से पूरी तरह परिचित, धर्म अनुकूल आचरण करनेवाले, धर्मपरायण, और अखिल शास्त्रों में से तत्त्वों का आदेश करनेवाले गुरु कहे जाते हैं.
निवर्तयत्यन्यजनं प्रमादतः स्वयं च निष्पापपथे प्रवर्तते। गुणाति तत्त्वं हितमिच्छुरंगिनाम् शिवार्थिनां यः स गुरु र्निगद्यते॥
भावार्थ: जो दूसरों को भ्रमित होने से रोकते हैं, स्वयं पापरहित जीवन रास्ते से चलते हैं, हित और कुशल-क्षेम, की अभिलाषा रखनेवाले को तत्त्वबोध करते हैं, उन्हें गुरु कहते हैं.
नीचं शय्यासनं चास्य सर्वदा गुरुसंनिधौ। गुरोस्तु चक्षुर्विषये न यथेष्टासनो भवेत्॥
भावार्थ: गुरु के पास निरन्तर उनसे छोटे आसन पर ही बैठना चाहिए. जब भी गुरु का आगमन होता है, तब उनकी अनुमति बिना नहीं बैठना चहिये.
किमत्र बहुनोक्तेन शास्त्रकोटि शतेन च। दुर्लभा चित्त विश्रान्तिः विना गुरुकृपां परम्॥
भावार्थ: बहुत कहने से क्या? करोडों शास्त्रों से भी क्या? सच्ची मन की शांति , गुरुदेव के बिना मिलना सचमे असंभव
प्रेरकः सूचकश्वैव वाचको दर्शकस्तथा। शिक्षको बोधकश्चैव षडेते गुरवः स्मृताः॥
भावार्थ: प्रोत्साहन देनेवाले, सूचन देनेवाले, यथार्थ बतानेवाले, पंथ दिखानेवाले, शिक्षा देनेवाले, और ज्ञान(बोध) करानेवाले – यह सभी (गुण ) गुरु समान है.गुकारस्त्वन्धकारस्तु रुकार स्तेज उच्यते। अन्धकार निरोधत्वात् गुरुरित्यभिधीयते॥
भावार्थ: ‘गु’कार याने अंधकार(तिमिर), और ‘रु’कार याने तेज; जो अंधकार का (ज्ञान का प्रकाश देकर) निरोध करता है, वह व्यक्ति को गुरु कहलाता है.
शरीरं चैव वाचं च बुद्धिन्द्रिय मनांसि च। नियम्य प्राञ्जलिः तिष्ठेत् वीक्षमाणो गुरोर्मुखम्॥
भावार्थ: शरीर, वाणी, बुद्धि, इंद्रिय और मन को संयम(नियंत्रण) में रखकर, हाथ जोडकर गुरु के सन्मुख देखना चाहिए.
विद्वत्त्वं दक्षता शीलं सङ्कान्तिरनुशीलनम्। शिक्षकस्य गुणाः सप्त सचेतस्त्वं प्रसन्नता॥
भावार्थ: विद्वता (पांडित्य), दक्षता(निपुणता), शील, संक्रांति, अनुशीलन, सचेतत्व, और प्रसन्नता ये सात शिक्षक के गुण हैं.
अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जन शलाकया। चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः॥
भावार्थ: जिसने ज्ञानांजनरुप शलाका से, अज्ञानरुप अंधकार से अंध हुए लोगों की आँखें खोली(सच से परिचित करवाया) ,एसे गुरु को प्रणाम.